चौबिस तीर्थंकर

भगवान श्री आदिनाथ


जब तृतीय काल में चौरासी लाख वर्ष पूर्व तीन वर्ष साड़े आठ महीने प्रमाण काल शेष रह गया था तब श्री आदिनाथ जी का जन्म हुआ था। भगवान श्री आदिनाथ जी के अन्य नाम भी हैं जैसे- भगवान श्री वृषभनाथ जी, भगवान श्री ऋषभनाथ जी, भगवान श्री पुरूदेव आदि। इनमें सबसे ज्यादा प्रचलित नाम भगवान श्री आदिनाथ है। भगवान श्री आदिनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे। भगवान का वर्ण तपाये हुये स्वर्ण के समान था। भगवान आदिनाथ के वैराग्य का कारण नीलाज्जना नर्तृकी का नृत्य करते हुए भरण को प्राप्त होना था।

श्री आदिनाथ भगवान की दीक्षा चैत कृष्ण नवमीं अपरान्ह समय उत्तराषाढा नक्षत्र में हुई थी। भगवान ने दीक्षा के पश्चात् एक हजार वर्ष तक तप किया। भगवान श्री आदिनाथ जी का प्रथम आहार श्रेयांश राजा द्वारा इक्षुरस आहार द्वारा हस्तिनापुर नगर में हुआ था। प्रथम आहार एक वर्ष उन्तालीस दिन पश्चात् हुआ था। भगवान श्री आदिनाथ को पुरिमतालपुर नगर के शकटास्य नामक उद्यान में वटवृक्ष के नीचे फाल्गुन वदी ग्यारस को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान के समवशरण में चौरासी गणधर विराजते थे। इनमें प्रमुख गणधर श्री ऋषभ सेन जी थे।

श्री भगवान आदिनाथ स्वामी ने विदेह क्षेत्र की व्यवस्था के अनुसार क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन तीन वर्णो का प्रतिपादन किया था। एवं प्रजा को असिकर्म (शस्त्र विद्या), मसि कर्म (लेखन विद्या, तथा कृषि कर्म, वाणिज्य, शिल्प, विद्या आदि षटकर्म सिखाया था।

श्री आदिनाथ भगवान तृतीय काल में कैलाश पर्वत से माघ वदी चैदह पूर्वान्ह काल में मोक्ष गये थे। उस समय चतुर्थ काल प्रारंभ होने में तीन वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रह गये थे।

भगवान श्री अजितनाथ जी


भगवान श्री आदिनाथ के मोक्ष जाने के पचास लाख करोड़ सागर समय बाद भगवान श्री अजित नाथ का जन्म हुआ था । भगवान श्री अजितनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे । भगवान को पौष शुक्ल ग्यारस को अयोध्या नगरी के सेहतुल वन में सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान के समवशरण में नब्बे गणधर विराजते थे । इनमें प्रमुख गणधर श्री केसरी सेन थे । श्री अजितनाथ भगवान के समय ढाई द्वीप में सबसे अधिक एक सौ सत्तर तीर्थकर विद्यमान थे । भगवान श्री अजितनाथ चैत्र शुक्ल पंचमी को पूर्वान्हकाल में श्री सम्मेद शिखर के श्री सिद्धवर कूट से मोक्ष मोक्ष को प्राप्त हुए थे ।

भगवान श्री सम्भवनाथ जी


श्री अजितनाथ भगवान के मोक्ष जाने के दस लाख कोटि सागर समय बीत जाने के बाद श्री सम्भवनाथ भगवान का जन्म हुआ था । भगवान श्री संभवनाथ इक्ष्वाकु वंश एवं स्वर्ण वर्ण शरीर वाले थे । मेघ (बादलों) के विनाश का देखना भगवान के वैराग्य का कारण था । भगवान श्री सम्भवनाथ जी को कार्तिक कृष्णा चतुर्थी की श्री वस्ती नगरी के सहेतुक वन में शाल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान श्री सम्भवनाथ जी के समवशरण में एक सौ पाँच गणधर विराजते थे, इनमें श्री चारूदत्त जी प्रमुख गणधर थे । भगवान श्री सम्भवनाथ जी चैत्रशुक्ल षष्ठी को ज्येष्ठ नक्षत्र के अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री धवल कूट से मोक्ष को प्राप्त हुए थे ।

भगवान श्री अभिनंदननाथ जी


श्री संभवनाथ भगवान के मोक्ष जाने के नौ लाख करोड़ सागर समय बाद श्री अभिनंदन नाथ भगवान का जन्म हुआ था । भगवान श्री अभिनंदन नाथ इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य गंधर्वनगर के नाश को देखकर हुआ था। भगवान को पौष शुक्ला चतुर्दशी को अपरान्ह काल में अयोध्या नगर के उग्रवन में सरल वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान के समवशरण में एक सौ तीन गणधर विराजते थे एवं प्रमुख गणधर श्री वज्रचमर (वज्रनाभि) थे। भगवान श्री अभिनंदन नाथ वैशाख शुक्ल छट को पूर्वान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री आनंद कूट से मोक्ष को प्राप्त हुए थे।

भगवान श्री सुमतिनाथ जी


भगवान श्री सुमतिनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे, एवं भगवान का शरीर सुवर्ण वर्ण का था । भगवान को वैराग्य, जाति स्मरण को देखकर हुआ था । श्री सुमतिनाथ भगवान के समवशरण में एक सौ सोलह गणधर विराजते थे । इनमें प्रमुख गणधर श्री वज्रसेन (अमर वज्र) थे । श्री सुमतिनाथ भगवान चैत्र शुक्ल ग्यारस को पूर्वान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री अविचल कूट से मोक्ष प्राप्त हुए थे ।

श्री पद्मप्रभुजी भगवान


श्री सुमतिनाथ भगवान के मोक्ष जाने के नब्बे हजार करोड़ सागर समय बीत जाने पर श्री पद्मप्रभुजी भगवान का जन्म हुआ था । भगवान श्री पद्मप्रभुजी इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर विद्रुम (लाल वर्ण) वर्ण का था । भगवान को वैराग्य जाति स्मरण से हुआ था । श्री पद्मप्रभुजी भगवान को चैत्र शुक्ल पन्द्रस को अपरान्ह काल में कौशाम्बी नगर के मनोहर वन में प्रियंगुवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । श्री पद्मप्रभु जी भगवान के समवशरण में एक सौ ग्यारह गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री चमर जी थे । श्री पद्मप्रभुजी भगवान फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री मोहन कूट से मोक्ष को प्राप्त हुए थे। भगवान श्री पद्मप्रभुजी ने अपने शासनकाल में महामण्डलीक राजा के पद को प्राप्त किया था।

श्री सुपार्श्वनाथजी भगवान


श्री पद्मप्रभुजी भगवान के मोक्ष जाने के नौ हजार करोड़ सागर समय पश्चात् श्री सुपार्श्वनाथ जी भगवान का जन्म हुआ था। भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर हरित वर्ण का था । भगवान को वैराग्य बसंत लक्ष्मी का नाश (पतझड़) देखकर हुआ था । श्री सुपार्श्वनाथ जी भगवान को फाल्गुन कृष्ण छट के अपरान्ह काल में सहेतुक वन के शिरीष वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में पंचानवे गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री बलदत्त थे। भगवान श्री सुपाश्र्वनाथ को फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को अपरान्ह काल में श्री सुम्मेद शिखर के श्री प्रभास कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था।

श्री चन्द्रप्रभु भगवान


श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के मोक्ष जाने के नौ सौ करोड़ सागर, बीत जाने पर श्री चन्द्रप्रभु भगवान का जन्म हुआ था । भगवान श्री चन्द्रप्रभु जी इक्ष्वाकु वंश के थे एंव भगवान का शरीर चन्द्रमा के समान श्वेत वर्ण का था। भगवान को वैराग्य तड़ित देखकर हुआ था। श्री चन्द्रप्रभु भगवान को फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को अपरान्ह काल के सवार्थवन में नागवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में तेरानवे गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री वैदर्भ (दत्त) थे। भगवान श्री चन्द्रप्रभु को फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को पूर्वान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री ललित कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था ।

श्री पुष्पदंत नाथ भगवान


श्री चंद्रप्रभु भगवान के मोक्ष जाने के नब्बे करोड़ सागर समय बीत जाने पर श्री पुष्पदंतनाथ भगवान का जन्म हुआ था। भगवान श्री पुष्पदंत नाथ जी इक्ष्वाकु वंश के थें एवं भगवान का शरीर श्वेत वर्ण का था। भगवान को वैराग्य उल्कापात देखकर हुआ था । श्री पुष्पदंत भगवान को कार्तिक शुक्ला दीज को अपरान्ह काल में काकंदी नगर के पुष्पक वन में बहेड़ा वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । श्री जी के समवशरण में अटठासी गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री नाग (अनगार) थे । भगवान श्री पुष्पदंत नाथ को अश्विन सुदी अष्टमी को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री सुप्रभ कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था।

श्री शीतल नाथ भगवान


श्री पुष्पदंत नाथ भगवान के मोक्ष जाने के सौ सागर समय पश्चात् श्री शीतलनाथ भगवान का जन्म हुआ था। भगवान श्री शीतलनाथ जी इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य हिम का नाश देखकर हुआ था। श्री शीतल नाथ भगवान को पौष कृष्ण चतुर्दशी को अपरान्ह काल में सहेतुक वन में धूलीपलाश वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में सतासी गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री कुंथु जी थे। भगवान श्री शीतल नाथ को अश्विन शुक्ल अष्टमी पूर्वान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री विद्युत कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था।

श्री श्रेयांसनाथ भगवान


श्री शीतलनाथ भगवान के मोक्ष जाने के एक सौ एक सागर में छयासठ लाख छब्बीस हजार वर्ष कम, वर्ष बीत जाने पर श्री श्रेयांश नाथ भगवान का जन्म हुआ था । श्री श्रेयांसनाथ भगवान इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य बसंत लक्ष्मी का नाश (पतझड़) देखकर हुआ था। श्री श्रेयांसनाथ भगवान को माघ कृष्णा अमावश को अपरान्ह काल के मनोहर वन में तेंदुवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में सत्तर गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री धर्म जी थे। भगवान श्री श्रेयांस नाथ को श्रावण शुक्ल पन्द्रस को पूर्वान्ह कल में श्री सम्मेद शिखर के श्री संकुल कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था।

श्री वासुपूज्य भगवान


श्री श्रेयांसनाथ भगवान के मोक्ष जाने के बहत्तर लाख वर्ष कम चौवन सागर बीत जाने पर श्री वासुपूज्य भगवान का जन्म हुआ था। भगवान श्री वासुपूज्य जी इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर केसर के समान वर्ण का था। भगवान को वैराग्य, जाति स्मरण से हुआ था। श्री वासुपूज्य भगवान को माद्य सुदी दोज की अपरान्ह काल में चम्पापुर नगर के मनोहर वन में पाटल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में छियासठ गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री मन्दिर जी थे। श्री वासुपूज्य भगवान को भादो शुक्ल चौदस को अपरान्ह काल में चम्पापुर नगर के मंदारगिरी पर्वत से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री वासुपूज्य भगवान ऐसे पहले ब्रह्मचारी तीर्थकर है जिनके पाँचो कल्याणक एक ही स्थान चंपापुर में हुए हैं । भगवान वासुपूज्य के शासन काल में श्री तारक नाम के प्रतिनारायण एवं श्री अचल नाम के रूद्र हुये।

श्री विमल नाथ भगवान


श्री विमल नाथ भगवान इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर सुवर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य मेघ देखकर हुआ था। श्री विमल नाथ भगवान को माघ शुक्ल छट को अपरान्ह काल में कम्पिल नगर के सहेतुक वन में जामुन वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में पचपन गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री जय जी थे। भगवान श्री विमलनाथ जी को अषाढ़ कृष्ण अष्टमी को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री सुवीर (संकुल) कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री विमलनाथ भगवान के शासन काल में श्री धर्मनाम बलदेव, स्व. श्री स्वयंभू नाम के नारायण, श्री मेरक नाम के प्रतिनारायण तथा श्री पुण्डरीक नाम के रूद्र हुए।

श्री अनंतनाथ भगवान


श्री अनंतनाथ भगवान की आयु तीस लाख वर्ष की थी एवं उनका कुमार काल सात लाख हजार वर्ष का था। श्री अनंतनाथ भगवान इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर सुवर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य बिजली गिरते हुए देखने से हुआ था । श्री अनंतनाथ भगवान को चैत्र कृष्णा अमावश को अपरान्ह काल में अयोध्या नगर के सहेतुक वन में पीपल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान श्री अनंतनाथ का केवली काल दो वर्ष कम साड़े सात लाख वर्ष का था । श्री जी के समवशरण में पचास गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री जयार्य (अरिष्ट) जी थे । भगवान श्री अनंनत नाथ चैत्र कृष्णा अमावस्या को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री स्वयं भू कूट से मोक्ष को प्राप्त हुए थे।

श्री धर्मनाथ भगवान


भगवान श्री धर्मनाथ का जन्म कुरूवंश में हुआ था भगवान धर्मनाथ की आयु दस लाख वर्ष की थी एवं कुमार काल पच्चीस हजार वर्ष का था। भगवान का शरीर सुवर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य उल्कापात (बिजली गिरना) देखने से हुआ था। श्री धर्मनाथ भगवान को पौष शुक्ला पूर्णिमा को अपरान्ह काल में रत्नपुर नगरी के सेहुतक वन में दधिपर्ण वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान का केवली काल एक वर्ष कम पच्चीस हजार वर्ष का था। श्री जी के समवशरण में तेतालिस गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री अरिष्ट सेन जी थे। भगवान श्री धर्मनाथ जी को ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी को अपरान्ह काल में श्री सुम्मेद शिखर के श्री सुदत्तवर कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री धर्मनाथ भगवान के शासनकाल में श्री मघवा एवं श्री सनत्कुमार नामक दो चक्रवर्ती तथा श्री सुदर्शन एवं श्री बलदेव नामक दो बलदेव हुए। इसके अलावा श्री पुरूष सिंह नाम के नारायण एवं निशुम्भ नाम के प्रतिनारायण तथा श्री अजित नाभि नाम के रूद्र हुए।

श्री शांतिनाथ भगवान


भगवान श्री शांतिनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था । तथा उनकी आयु एक लाख वर्ष की थी । उनका बचपन पच्चीस हजार वर्ष का था एवं भगवान का शरीर तपाये हुए स्वर्ण वर्ण जैसा था। भगवान शांतिनाथ पांचवे चक्रवर्ती राजा एवं बारहवें कामदेव थे । श्री शांतिनाथ भगवान ने पचास हजार वर्ष तक राज्य किया । श्री शांति नाथ भगवान को जाति स्मरण से वैराग्य हुआ था । श्री शांतिनाथ भगवान को पौष शुक्ल दशमी को अपरान्ह काल में हस्तिनापुर नगर के आग्रवन में नंदी वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान शांतिनाथ का केवली काल चौबीस हजार नौ सौ चौरासी वर्ष का था । श्री जी के समवशरण में छत्तीस गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री चक्रायुद्ध थे। भगवान श्री शांतिनाथ को ज्येष्ठ कृष्णा चौदह को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री कुंदप्रभ कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था । श्री शांतिनाथ भगवान के तीर्थ में श्रीपीठ नाम के रूद्र हुए ।

श्री कुंथुनाथ भगवान


श्री कुंथुनाथ भगवान ने कुरू वंश में जन्म लिया था । भगवान कुंथुनाथ जी की आयु पंन्चानवे हजार वर्ष एवं आपका कुमार काल तेइस हजार सात सौ पचास वर्ष का था। भगवान का शरीर तपाये हुये स्वर्ण वर्ण के समान थे। कुंथुनाथ भगवान छठवें चक्रवर्ती राजा एवं कामदेव पद से सुशोभित थे। भगवान को वैराग्य, जाति स्मरण से हुआ था। श्री कुंथुनाथ भगवान को चैत्र शुक्ला तीज को अपरान्ह काल में हस्तिनापुर नगर के सहेतुक वन में तिलक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री कुंथुनाथ भगवान का केवली काल तेईस हजार सात सौ चैतीस वर्ष का था। श्री जी के समवशरण में पैंतीस गणधर विराजते थे। इनमे प्रमुख गणधर श्री स्वयंभू थे। भगवान श्री कुंथुनाथ जी को वैसाख शुक्ल एवम को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री ज्ञानधर कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था ।

श्री अरहनाथ भगवान


श्री कुंथुनाथ भगवान के मोक्ष जाने के एक हजार करोड़ वर्ष कम चैथाई पल्य बीत जाने पर श्री अरहनाथ भगवान हुए थें। श्री अरहनाथ भगवान का जन्म कुरू वंश में हुआ था एवं वे कश्यप गोत्र के थे । भगवान अरहनाथ की आयु चौरासी हजार वर्ष थी एवं कुमार काल इक्कीस हजार वर्ष का था। भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था । भगवान को वैराग्य शरद ऋतु के बादलों का नष्ट होना देखकर हुआ था । श्री अरहनाथ भगवान को कार्तिक शुक्ल बारह को अपरान्ह काल में हस्तिनापुर नगर के सहेतुक वन में आम्र वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान का केवली काल बीस हजार नौ सौ चौरासी वर्ष का था। श्री जी के समवशरण में तीस गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री कुंभ जी थे। श्री अरहनाथ भगवान को चैत्र कृष्ण अमावस को प्रातः काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री नाटक कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री अरहनाथ भगवान स्वयं चक्रवर्ती एवं कामदेव थे। भगवान के तीर्थ में श्री सुमौम चक्रवर्ती, श्री नंदी बलदेव श्री पुरूष पुंडरीक नारायण एवं श्री बली प्रतिनारायण हुए।

श्री मल्लिनाथ भगवान


भगवान श्री मल्लिनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। भगवान का गोत्र कश्यप था । श्री मल्लिनाथ भगवान की आयु पचपन हजार वर्ष थी एवं कुमार काल एक सौ वर्ष था। भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य, तड़ित देखकर हुआ था । श्री मल्लिनाथ भगवान को पौष सुदी दोज को अपरान्ह काल में मिथला नगर में मनोहर वन के अशोक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में अटठाइस गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री विशाख जी थे। श्री मल्लिनाथ भगवान को फाल्गुन सुदी पंचमी को सांय काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री सम्बल कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था । श्री मल्लिनाथ भगवान के धर्म तीर्थ में श्री पद्म नाम के चक्रवर्ती, श्री नंदी मित्र नाम के बलभद्र, श्री पुष्पदंत नाम के नारायण एवं श्री प्रहरण नाम के प्रति नारायण हुए। श्री मल्लिनाथ भगवान बालब्रह्मचारी तीर्थ कर हुए है।

मुनिसुव्रतनाथ भगवान


श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान का जन्म हरिवंश (यादव वंश) में हुआ था। श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान की आयु तीस हजार वर्ष की थी एवं उनका कुमार काल सात हजार पाँच सौ वर्ष था । भगवान ने पन्द्रह हजार वर्ष राज्य किया । भगवान का शरीर नील वर्ण का था। भगवान को वैराग्य जाति स्मरण द्वारा हुआ था । श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान को वैशाख कृष्ण नवमी केा पूर्वान्ह काल में राजगृही नगर के नीलवन में चम्पक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। श्री जी के समवशरण में अठारह गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री मल्लि थे। श्री मुनि सुव्रतनाथ भगवान को फाल्गुन कृष्ण बारस को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री निर्जर कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री मुनिसुव्रत नाथ भगवान के धर्म तीर्थ से श्री हरिसेन नाम के चक्रवर्ती, मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी नाम के बलदेव, श्री लक्ष्मण नाम के नारायण एवं श्री रावण नाम के प्रतिनारायण हुए थे।

श्री नमिनाथ भगवान


श्री नमिनाथ भगवान का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था । भगवान की आयु दस हजार वर्ष थी एवं कुमार काल दो हजार पाँच सौ वर्ष था । श्री नमिनाथ भगवान राज्य काल पाॅच हजार वर्ष का था। भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान श्री नमिनाथ को वैराग्य, जाति स्मरण से हुआ था। श्री नमिनाथ भगवान को मगसिर शुक्ल ग्यारस को अपरान्ह काल में मिथला नगर के चैत्रवन में मौली श्री (वकुल) वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान का केवली काल दो हजार चार सौ इक्यांनवें वर्ष का था । श्री जी के समवशरण में सत्रह गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री सुप्रभ थे। श्री नमिनाथ भगवान को वैशाखू कृष्ण चौदस की प्रातः काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री मित्र धर कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री नमिनाथ भगवान के शासनकाल में श्री जयसेन नाम के चक्रवर्ती हुए थे।

श्री नेमिनाथ भगवान


श्री नमिनाथ भगवान के मोक्ष जाने के एक हजार कम पाॅच लाख वर्ष पश्चात् श्री नेमिनाथ भगवान हुए। श्री नेमिनाथ भगवान का जन्म यादव वंश में हुआ था। भगवान की आयु एक हजार वर्ष की थी। भगवान श्री का कुमार काल तीन सौ वर्ष का था। श्री नेमिनाथ भगवान का शरीर नील वर्ण का था। भगवान को वैराग्य, बॅंधे हुए पशुओं को देखकर हुआ था। श्री नेमिनाथ भगवान को आश्विन शुक्ला एकम को पूर्वान्ह काल में उर्जयन्त पर्वत (गिरनार पर्वत) पर मेघश्रृंग वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। उनका केवलीकाल छह सौ निन्यानवे वर्ष दस महीने चार दिन का था। श्री जी के समवशरण में ग्यारह गणधर विराजते थे तथा प्रमुख गणधर श्री वरदत्त जी थे। श्री नेमिनाथ भगवान को आषाढ़ सुदी अष्टमी को सांय काल में गिरनार पर्वत के उर्जयन्त टैंक से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री नेमिनाथ भगवान का तीर्थ प्रवर्तन काल चौरासी हजार तीन सौ अस्सी वर्ष का रहा।

श्री पाश्र्वनाथ भगवान


श्री नेमिनाथ भगवान के मोक्ष जाने के तिरासी हजार छह सौ पचास वर्ष बीत जाने के पश्चात श्री पाश्र्वनाथ भगवान का जन्म हुआ था। श्री पाश्र्वनाथ भगवान का जन्म उग्र वंश में हुआ था। भगवान की आयु एक सौ वर्ष की थी कुमार काल तीस वर्ष का था । भगवान का शरीर हरितश्याम वर्ण का था । भगवान को वैराग्य जातिस्मरण से हुआ था । श्री पाश्र्वनाथ भगवान को चैत्र कृष्ण चतुर्थी को पूर्वान्ह काल में शुक्रपुर नगर के अश्वत्थ वन में धव वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान का केवली काल उन्नतर वर्ष आठ माह का था। श्री जी के समवशरण में दस गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री स्वयंभू जी थे। भगवान श्री पाश्र्वनाथ जी को श्रावण शुक्ल सप्तमी को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर जी के श्री स्वर्णभद्र कूट से मोक्ष प्राप्त हुआ था। श्री पाश्र्वनाथ भगवान का तीर्थ प्रवर्तन दो सौ अठहत्तर वर्ष का था।

श्री महावीर भगवान


श्री महावीर भगवान का जन्म नाथ वंश में हुआ था। भग। की आयु बहत्तर वर्ष की थी कुमार काल तीस वर्ष का था। भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान को जाति स्मरण से वैराग्य हुआ था। श्री महावीर भगवान को बैशाख शुक्ल दशमी को पूर्वान्ह काल में ऋजुकूला नदी के किनारे शाल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान का केवली काल तीस वर्ष का था । श्री जी के समवशरण में ग्यारह गणधर विराजते थे, इनमें प्रमुख गणधर श्री गौतम जी थे। श्री भगवान महावीर कार्तिक कृष्णा अमावश्या को प्रातः काल श्री पावापुर से मोक्ष गये थे। श्री महावीर भगवान के अन्य नाम श्री वीर, श्री अतिवीर, श्री सन्मति, एंव श्री वर्धमान है। श्री महावीर स्वामी का तीर्थ प्रवर्तन काल इक्कीस हजार ब्यालिस वर्ष का है।

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कुण्डलपुर

कुण्डलपुर दिव्य शहर दमोह, मध्य प्रदेश से 35 किलोमीटर दूर स्थित है | यह जगह भारत में जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ है। यहाँ बड़े बाबा ( भगवान् ऋषभ देव) की